सोमवार, फ़रवरी 23

कविता / पीयर-हरियर

जहन पीयर पात झरैत अछि
हरयिर पात हँसैत नहि अछि
ओ, थोड़ेक सिहरि उठैत अछि
ओहि फौजी जकाँ
जे देखि रहल अछि
गोली लगला पर खसैत अप्पन पडोसी कें।
सर्दीक सर्द हुअन सें
जहन फूलय लागैत छै ओकर नस
ध्यान आबैत है ओकरा
नियति कें रंग पीयर
आओर ओ म जाइत अछि सुन्न।
आ पीयर पता सडैत अछि वेग सँ
जाहि सँ ओ बनि सकैछ हरयिर पात
खिला सकैय फूल
अगिला बसंत में
हरियर पात नहि जानैछ, किछुओ
करलाक बाद आत्मा कें , सफर कें बारे में।
हरियर पातक दुख पीयर पीयर छै
पीयर पातक सपना हरियर-हरियर
ताहिं, जहन नवतुर हँसैत अछि
सूरजमुखी खिलैत अछि
आओर ... हाँ, ताहिं बूढ़क
नोर झिलमिलाइत अछि
मणि जकाँ।

- के. सच्चिदानंद

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