शनिवार, फ़रवरी 14

कविता /पागल

- के. सच्चिदानंद


पागलंक कोनो जाति नहि होइछ
न´ि धर्म होइछ
ओ लिंग मेद सँ इतर होइछ
ओकर चालि-चालन अपनहिं होइछ
ओकर “ाुद्धताकें जानत
बड कठिन छै।

पागलक भा’ाा सपना कें भा’ा नहिं
ओ त ककरो दोसरे कें यथार्थ होइछ
हुनक प्रेम चाँदनी थिक
जे पूर्णिमा में उपड़ैत-बहैत अछि।
जहन ओ ऊपर दि”ा देखैत अछि
त ऐना देखैत लगैछ
जकना कहियो सुनल-गुनल न´ि होईहि
जहन हमरा लगैत अछि जे
ओहिना कन्हा झटकि रहल अछि ओ
त उड़ि रहल रहैत अछि ओहि समय ओ
नुकायल पाँखिल संग।

हुनक विचार अछि जे
माछी में आत्मा होइछ
मगवान टिड्डा बनि हिरयर टांग पर
फुदकैत छथि
कखनो-कखनो त हुनका गाछ सँ
“ाोणित टपकैत देखाइत छैन्हि
कखनो-कखनो बाट पर
“ोर दहाडै़त देखइत छैन्हि।

कखनो-कखनो बिलड़ि कें आँखि में
स्वर्ग चमकैत देखैत छथि
एहि काज मे त ओ हमरे जकाँ छथि
तइयो, चुट्टी कें झुण्ड कें गाबैत
केवल वैह सुनि सकैत छथि।

जहन ओ सहलावैत छैथि हवा कें त
धरती कें धुरी पर घुमावैत
बिहाड़ि कें पालतू बनाबैत
जहन ओ पयर कें पटकि क चलैत छथि त
जापानक ज्वालामुखी कें
फटनाम सँ बचा रहल होइत छैथि।

पागलक समय सेहो दोसर होइह
हमर एक सदी
हुनक लेल एक पल होइत अछि
बीस चुटकिए पर्याप्त अछि हुनक लेल
भगवान लग पहुँचबाक लेल
आठ चुटकी मे त ओ बुद्ध लग पहुँ जेताह।

दिन मरि मे त ओ
आदिम विस्फोट मे पहुँच जेताह
ओ बेरोक चलैत अछि
किएक त धरती चलैत रहैत अछि
पागल,
हमरा जकाँ
पागल न´ि होइछ।

परिचयः- मलयालम कें प्रख्यात कवि के.सच्चिदानंदन क कविता कें पंजाबी में अनुवाद डा. बनीता कएलीह,जे ‘‘पीले पत्ता का सपना’’ “ाीर्’ाक सँ पुस्तक रूप में साहित्य आकादमी, दिल्ली द्वारा वर्’ा 2003 में प्रका”िात मेल। ई कवि एहि पंजाबी कविता संग्रह सँ लेल गेल अछि, जकर पंजाबी सँ हिन्दी अनुवाद सुभा’ा नीरव कएलाह। मैथिली में कविताक अनुवाद हिन्दी सँ कएक गेल। श्री. सच्चिदानंदन साहित्य अकादमी कें सचिव रहि चुकल छथि आ हिनक बहुत रास कविताक अनुवाद भारत आ वि”वक अनेक भा’ाा में भ चुकल अछि।

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