बुधवार, जुलाई 8

कविता / खादी

उज्जर, खुरदुर कागज
कहबैत अछि 'बलौटिन पेपर
सोखि जाइत अछि सभटा रोशनाइ
एकरा मचोरला पर नहि निकलैत अछि
एको कुल रोशनाइ
नहि होइत अछि आंगुर कारी।

उज्जर, खुरदुर कपड़ा
कहबैत अछि खादी
सोखि जाइत अछि सभटा विकास आ रिलिफ
एकरा मचोरला पर नहि निकलैत अछि
एको गोटा केर 'आहÓ
भ जाइत अछि आंगुर घवाह।

'बलौटिन पेपरÓ कागज भइयो क
आम कागज नहि अछि
खादी कपड़ा भइयो क
आम कपड़ा नहि अछि
'बलौटिन पेपरÓ रोशनाई सोखला पर
भ जाइत अछि कारी
खादी विकास आ रिलिफ सोखला पर
भ जाइत अछि
उज्जर सं आर उज्जर धपधप।


- पूर्णेंदु चौधरी

1 टिप्पणी:

ओम आर्य ने कहा…

बहुत ही सुन्दर्