मंगलवार, जुलाई 21

मनोरंजन बहाने समाज किम्हर?

अजुका समय मे जकरा हम सब आधुनिक कहैत छियैह, सभ गोटे केँ भागम-भागी लागल रहैथ छन्हि। सभ किओ अपना केँ तथाकथित आधुनिक कहाबय लेल बेहाल रहैत छथि। बेसी सँ बेसी अर्थ कोना संचय कय सकी? इएह भागम-भागी के मूल मे रहैछ आ एहिक लेल अफस्याँत रहैत अछि। एहन समय मे फुर्सत के क्षण अबितै लोक अपन रुचि आ औकातिक हिसाबे मनोरंजनक साधन ताकि लैत अछि। किओ सिनेमाघर दिश रुख करैत छथि तऽ किओ सैर-सपाटा लेल जाइत छथि। किओ एकांत मे कतओ बैसि कर्णप्रिय मधुर संगीत सुनब पसिन्न करैत अछि तऽ किओ पोथी पढ़ब, ओहिठाम किछु गोटे अप्पन लोकक संग समय बितायब। सभक अलग-अलग विचार होइत छन्हि, अलग-अलग मनोरंजनक साधन।
केबुल संस्कृति एहन ने पइठ बना लेलक, जे सभ किओ एकरे दिश्ï मुंह बौने ठाढ़ रहैत अछि। खास कय कऽ घरेलू महिला आ नेना-भुटकाक सबसँ प्रिय मनोरंजनक साधन भऽ गेल अछि टेलीविजन ताहू मे केबुल संस्कृति। आई-काल्हि एतेक ने निजी टी।वी. चैनल भऽ गेल छै, जे कोनो ने कोनो चैनलक कार्यक्रम लोक के पसिन्न होइते टा छन्हि। किनको धारावाहिक तऽ किनको सिनेमा, किओ खेल-कूद देखैत छथि तऽ किओ पॉप-संगीत, कहबाक तात्पर्य ई जे सभहक पसिन्नक साज-समान एहि निजी चैनल पर रहैत छन्हि। ई भिन्न कथा जे एहि मनोरंजनक पाछाँ हमर समाज किम्हर जा रहल अछि, चिन्तन नञि भऽ रहल छै। निर्माता सिनेमा, धारावाहिक बनाऽ आ प्रसारण करबा अप्पन धनक उगाही करैत छथि तऽ लोक अपन मनोरंजन। सामाजिक मूल्यक बरू ह्रïास होऊ, एकर चिन्ता ककरा छैक, के तकैत अछि सामाजिक शिष्टïाचार आ सरोकार? ओ समय बीति गेल जखन लोक राष्टï्रीय प्रसारण मे समाचार देखैत आ सुनैत छल, नीक-नीक ज्ञानवद्र्धक धारावाहिक कार्यक्रम देखैत छल। अजुका बाजारवादी संस्कृतिक कारणेँ एकर बुझु जे भुस्सथरि बैसि गेलै।
आइ ई विमर्शक विषय अछि जे जाहि धारावाहिक किंवा सिनेमा केँ हमर महिला समाज आ-नवतुर देखि रहल अछि ओहि सँ ओकर मानस पटल पर केहन चित्र अंकित हएत। 'वसुधैव कुटुम्बकम्ïÓ केँ तऽ हम सब पहिने सँ बिसरल जा रहल छी, जकर परिणाम अछि संयुक्त परिवार टूटि-टूटि कऽ एकाकी व्यक्तिगत परिवार बनि रहल अछि। किछु दिन पहिने अप्पन लोक सँ तात्पर्य होइत छल-माय-बाप, भाई-बहिन, कनियाँ, धिया-पुता दर-दियाद आ निकट सम्बन्धी सँ परञ्च बदलैत समयक संग 'अप्पनÓ सँ अभिप्राय होइत अछि—स्वयं, कनियाँ आ धिया-पुता। एखन निजी चैनल पर किछु एहन-धारावाहिक देखाओल जा रहल अछि जाहि मे अपन समाजक नैतिकताक कतओ दरसि नञि छैक। ई धारावाहिक सभ घरेलू महिलाक बीच काफी लोकप्रिय भऽ गेल अछि। ओ जरूरी सँ जरूरी काज त्यागि देतीह मुदा धारावाहिक केँ, किन्नौ नञि! एहि धारावाहिक सभक माध्यमे कि परोसल जा रहल अछि, पत्नी के पति पर शंका, पति वा पत्नीक विवाहेतर संबंध, रखैल कोना राखी, खूनक संबंधक कोनो लिहाज नहि, अपन स्वार्थ सिद्धिक गप्प हुअए तऽ किनको धुतकारि दी चाहे ओ पति, बेटा, माय, बाप, पत्नी अथवा किओ आन हो, धन कोनो रूपेँ प्राप्त हुअए लेकिन हुअए एहि मे कोनो हर्ज नहि। किछु दिनक बाद पति नहि अनुकूल हुअए तऽ बदलि लिअ, पत्नी प्रतिकूल हुअए तऽ पत्नी। एकटा सँ मोन नहि तृप्त हुअए तऽ दोसरो करबा मे धरिदोख नहि। अप्पन कोनहुटा इच्छा के दमित नहि करी चाहे ओ अर्थ वा कामवासनाक कियैक नञि हुअए। एहि मे कोनो संबंध वा उमरि के देखब जरूरी नहि। कि केबुल संस्कृति मनोरंजनक माध्यमे समाज मे इएह संदेश दय रहल अछि?
महिला सभक बीच लोकप्रिय किछु धारावाहिक क चर्चा कय सकैत छी—'कुसुमÓ, 'क्योंकि सास भी कभी बहू थीÓ, 'कसौटी जिंदगी कीÓ इत्यादि। 'कुसुमÓ मे मुख्य किरदार कुसुम अछि, जकर पहिल वियाह अभय सँ होइत छै, लेकिन अभय प्रतिकूल बुझना गेला पर कुसुम सिद्धार्थ सँ वियाह कयलक। ओतय अभय दोसरा सँ। सिद्धार्थक माय आ सत्तमाय देवांशी आ रीमा दुनू मिलि कय जमीन-जायदाद लेल एहन ने चकर-चालि चलल कि ओ अपन बेटा सिद्धार्थ आ पुतोहु कुसुम के घर सँ निकालि देलक। 'कसौटी जिंदगी कीÓ मे प्रेरणा राहुल बजाजक द्वितीय ब्याहता अछि। एकर संतान कूकी आ विशाखा अछि। विशाखा के अपन सतमाय प्रेरणाक एकाकी जीवन देखल नहि जाय छै, ताहिं ओ मायक दोसर बियाह अनुराग सँ कराबैत अछि। कि हमर समाज एकरा स्वीकारत जे एक बेटी अप्पन मायक दोसर वियाह कराओत? एहि पर सोचनाहार किओ नहि?
'कहानी घर-घर कीÓ मे केंद्रीय किरदार तुलसी आ मिहिर अछि। हिनक घर-संसार सही रूपेँ चलैत छल, परञ्च मिहिरक विवाहेतर संबंध मदिरा सँ रहैछ। जहिया एहि गप्पक जानकारी तुलसी के भेलैक, घर मे केहन हरबिडऱो उठल हएत, सहजेँ अनुमान्य अछि। कि ई धारावाहिक इएह सनेश दैत अछि जे विवाहेतर संबंध राखी, नुकाय कऽ राखी, जहिया जगजियार हेतैक, देखल जेतै? कि एकरा देखला सँ एहि संभावना के नकारि सकैत छी जे आबए वाला नवतुर रखैल कोना राखी, एकर तरी-भिठी सिखि रहल छथि? एहने आर कतोक कार्यक्रम अछि जे समाजक मध्य अपन नहि जानि कोन सनेश परोसि रहल अछि आ हमर आधुनिक कहाबय वला समाज ओकरा बिनु जचने-परखने आत्मसात कय रहल अछि। एहि संदर्भ मे मौन पड़ैत अछि, वल्र्डकपक दौरान भारत-न्यूजीलैंडक मैच। हरेक घर मे सभ किओ संगे-बैसि एहि मैच के देखि रहल छलाह, माय-बाप, भाय-बहिन, बेटा-बेटी सभ किओ जे जहाँ छल सभ अपन-अपन टेलीविजन सेट पर मैच देखि रहल छल। ओहि मैचक दौरान 'एक्स्ट्रा इंनिंग्सÓ जे सैट मैक्स चैनल पर प्रसारित कार्यक्रम छल, मे मंदिरा बेदीक कपड़ा ककरा नहि आकर्षित कयलक। कहबाक लेल पहिरने छलीह साड़ी-ब्लाउज, मुदा ब्लाउज एतेक खुलल जे वक्षक अधिकांश हिस्सा ओहिना देखाइत छल, साड़ी एतेक पातर आ पारदर्शी जे 'ओहिÓ मे बाधक नहि छल।
यदि मंदिरा बेदी विदेशी रहितथि, तऽ नाङटो रहितथि तऽ कोनो बात नहि। लेकिन एकटा भारतीय महिला भऽ एना! अनसोहत्तगर लगैछ। समाज पर एकर कि असरि हएत? नञि जानि मनोरंजनक बहाने समाज किम्हर जा रहल अछि? कि जतबा हम सामाजिक मूल्य के बिसरि जाइ आओर जतबा नाङट रही ओतबा आधुनिक आ एडवांस कहायब?

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