मंगलवार, जुलाई 14

लघुकथा / मनुक्खक माँउस

दू गोट व्यक्तिक मध्य शुरू भेल झगड़ा दू गुटक बीच झगड़ा आ मारि मे बदलि गेल। गप्पक तनातनी बढ़ैत-बढ़ैत लाठी, फरसा आ बन्दूक धरि पहुँचि गेल छल। उपर एकटा झमटगर गाछ पर बैसल दू टा कौटा ई दृश्य देखि रहल छल। बड़का कौआ अपना बच्चाक आँखि अपन पाँखि सँ मूनि देलकै आ कहलकै, 'ई मनुक्खक लड़ाई छै। एहिना लड़ैत-लड़ैत मरि जेतै। ई सभ नहि सीखि। हँ, जखन क्यौ एकटा मरि जेतै तँ दुनू गोटे भरि पेट माँउस खायब।

- सत्येंद्र कुमार झा

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