अगहन मास के
कपकपैत ’िातलहरी मे
पुआरक टाल मे सुटकल
कैं कैं करैत, कुकुरक नवजात,
मनुक्खक बच्चा के
नव खिलौना
ककरो मोती, ककरो ‘ोरू त
ककरो मोना,
कहां सोचि पाबैत अछि
जे एही समाज मे
हमर हैत अवहेलना,
ओ अबोध, निर्बोध, स्वार्थहीन
कहां जानैत अछि
जे जेतअ सअ हमरा अछि
प्रेमक आ’ा
ओतहि काल्हि भेटत दुत्कार ।।
- अंकुर कुमार झा
मंगलवार, फ़रवरी 3
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2 टिप्पणियां:
Waah ! हृदयस्पर्शी !
yatharth ka sundar चित्रण किया है आपने......
यह बोली आती तो नही लेकिन फिर भी रचना पढी।अच्छी लगी।कृपया साथ में सुबोध हिन्दी में भाव भी समझा देगें तो समझने मे आसानी होगी।धन्यवाद।
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